नेलकटर
नेलकटर आदमियों से चिढ़ता है, वह एक भूखा जंतु है लेकिन आप उसे कीट-पतंगों या सरीसृपों में से
किसी भी समूह में नहीं रख सकते। अपनी आंतों की बीमारी से दाँत किटकिटाता वह अपनी चिड़चिड़ाहट के बीच भी आपके हाथ की सुस्ती पर तेज़ निगाह रखता है।
उसके काटे जब आप उसे ज़मीन पर गिरता या टेबल पर बेपरवाह पड़ा छोड़कर डिटॅाल
खोजने लगते हैं तब ऐसे में कभी एक पल रुककर उसके शैतानी से हँसते मुँह को देखिएगा। आपको अपनी ओर देखता देखते ही यह भोला निर्जीव-सा मुँह बना लेगा।
खिड़कियाँ
ये खिड़कियाँ ही हैं जो आखिरी तक हमारे सुधार की कोशिश कर रही हैं। कितना भी इन्हें बंद रखा जाए
ये दीवार न होंगी। थोड़ी मशक्कत से खुल जाएँगी धूप और हवा और धूल की शोर की ओर। विस्मृति
के विरुद्ध हमारी लड़ाई ये ही लड़ रहीं हैं। ये चाहती हैं हमें याद रहें सुबह और शाम के रंग, साइकिल
चलाते और बीड़ी पीते लोग। हमारा बाहर इन्हीं के फेफड़ों से गुज़रकर हमारी साँस में पैवस्त होता आया है।
बारिश जब इनसे ज्यादा लाड़ दिखाने लगती है तो ये उसको डाँट भी देती है।
भाषाएँ
भाषाएँ एक निराकार की ओर जाना चाहती हैं। बगैर उतार चढ़ाव वाली एक सार्वत्रिक आवाज़ में अंतिमतः विलीन होकर वे अभिव्यक्ति को पूर्णता देने के प्राचीन मिशन पर कार्यरत हैं। शब्दकोश वे अपनी दीर्घायु के लिए नहीं बढ़ा रहीं बल्कि वे सबकुछ समेट कर ले जाना चाहती हैं अपनी अंतिम इच्छा के समुद्र में। गणनाएँ उनके विरुद्ध हैं, कविता और संगीत उनके साथ। यह चुप का एकांत नहीं होगा अंत पर, सबकी एक ही भाषा की पहचानहीन आवाज़ होगी। संज्ञा की उसे ज़रूरत न होगी।
पत्थर
मौसम से बेअसर रहा आया है अनिद्रा का पत्थर। इसका धैर्य इसे स्थायी बनाता है। बिस्तर के साफ़ कोने में बैठकर यह देखता रहता है कमरे का स्थापत्य और इसकी सजावट। चाय के लिए पूछने पर यह उदासी से मुस्कुरा देता है और सिरहाने पड़ी किताब उठा लेता है यूँ ही पलटने के लिए। इसे तर्कों से नहीं जीता जा सकता, ना विनम्रता से ना बेचैनी से। एक तपस्वी है यह। तपस्या के अंत पर यह उठेगा और मुझको ख़त्म कर देगा।
बोतलें
बोतलों की देह को कभी भी युवा स्त्री की आकृति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। इससे बोतलों की भूरी उदासी थोड़ी और गहरी हो जाती है। उनके आँखें नहीं होतीं, अगर होतीं मुझे यकीन है - बड़ी-बड़ी और पनीली होतीं। वे डरी हुई आवाज़ में फुसफुसा कर बोलती हैं और अपने लुढ़कने को अंत तक गरिमापूर्ण बनाए रखती हैं। अपने से चिपटे रहने वाले लेबल्स से उनकी चिढ़ तो जगजाहिर है ही। वे इतनी शर्मीली हैं कि आज तक कर ही नहीं पाईं प्यार।
सिलाई मशीनें
सिलाई मशीनें बूढ़ी नहीं हुई हैं उन औरतों की तरह जो अपने पचासवें साल में भी मेहनत से अपना शरीर सुडौल बनाए रखती हैं। कहीं भी उनके चर्बी नहीं चढ़ी हैं और सारे दाँत अपनी जगह पर मौजूद। उनकी टूटी सुई बदलने का सौभाग्य आपको मिला हो तो आप ज़रूर चौंके होंगे उनके मुँह में ग़लती से चली गई अपनी उँगली पर उनके तेज़ दाँतों की चुभन से। उनकी आवाज़ में वही अधिकारपूर्ण फटकार है जो अत्यधिक धनी औरतों या मठों के कठोर अनुशासन में केँआरी रही आई भक्तिनों की आवाज़ में ही पायी जाती है। दोपहरों में सोते से जगा दिए जाने पर उनकी आवाज़ में आई कड़वाहट शाम तक चली जाती है।
गर्मियों में उन्हें खूब चुन्नटों वाले और घेरदार कपड़े पसंद आते हैं, हल्के रंग के और
जाड़ों में रंग -
बिरंगी छीटें और फूल वाले प्रिंट।
वे मानिनी नायिका की भावमुद्रा में हैं लेकिन एक त्रासद नाटक के अवश्यंभावी दुखांत में उनका मरना निश्चित है।